' एक सच होता सपना - BJ(MC)'
वो सब बदलना चाहता है , पर खुद बदलने को तैयार नहीं ...
दोषी सरकार को ठहराता है पर खुद कुछ करने को क्यूँ बेकरार नहीं ...
देश का कुछ नहीं हो सकता कहने वालो पर मुझे तरस आता है ....
सोचती हूँ क्यूँ वो हाथ बटाने को तैयार नहीं ...
सुन ले दुनिया की खबर रखने वाले बेखबर ... हर सोच से बदलाव आता है
ख्वाबो में जो तू चख के देखे ... वोह पकवान, पत्रकारिता बनाता है ..
हर साल में हो हर दिन बदलाव का
अब बारी है तेरी , क्या तुझे इसकी खबर नहीं
था मुझ में भी वोह जस्बा , कुछ कर दिखने का ...
तब मिला मुझे वो जरिया , कोयले से हीरा बनाने का
ले मैं बढाती हूँ एक कदम बदलाव की ऒर ,
क्या तू मेरा साथ देने को .. अब भी तैयार नहि…
चाहती हूँ फिर से .. सोने की चिड़िया चमकाऊं
हाथ में कलम लिए प्रगति का जस्बा जगाऊ
दिल में आशा हो और तस्वीर आदर्श की
माना यह जिमेवारी आसान नहीं ...
रोशन हो दुनिया , रोशन हो सच
रोशन हो इंसानियत और रोशन हो हम
जी ले वोह सपना सुनहरे भविष्य का
क्या यह सपना तेरा अपना नहीं ...
चाहती हूँ अपने सोच को , दुनिया में इस तेरह फैलाऊँ
एक दिन इस खुबसूरत सपने को हकीकत बनाऊ
जो क्रांति हो खुद में वो ही है क्रांति देश की
इस को एक मजबूत अपना फलसफा बनाऊ
जिस माहौल में जीना चाहती थी
वोही माहौल, बनाने को जी करता है
बनकर पत्रकार हर रंज से लड़ने को जी करता है
लिख दूँ हर फलक पे यह दास्ताँ
देश के मकसद से दे मकसद ज़िन्दगी को
क्या यही मेरी ज़िन्दगी की मुकाम नहीं
दोषी सरकार को ठहराता है पर खुद कुछ करने को क्यूँ बेकरार नहीं ...
देश का कुछ नहीं हो सकता कहने वालो पर मुझे तरस आता है ....
सोचती हूँ क्यूँ वो हाथ बटाने को तैयार नहीं ...
सुन ले दुनिया की खबर रखने वाले बेखबर ... हर सोच से बदलाव आता है
ख्वाबो में जो तू चख के देखे ... वोह पकवान, पत्रकारिता बनाता है ..
हर साल में हो हर दिन बदलाव का
अब बारी है तेरी , क्या तुझे इसकी खबर नहीं
था मुझ में भी वोह जस्बा , कुछ कर दिखने का ...
तब मिला मुझे वो जरिया , कोयले से हीरा बनाने का
ले मैं बढाती हूँ एक कदम बदलाव की ऒर ,
क्या तू मेरा साथ देने को .. अब भी तैयार नहि…
चाहती हूँ फिर से .. सोने की चिड़िया चमकाऊं
हाथ में कलम लिए प्रगति का जस्बा जगाऊ
दिल में आशा हो और तस्वीर आदर्श की
माना यह जिमेवारी आसान नहीं ...
रोशन हो दुनिया , रोशन हो सच
रोशन हो इंसानियत और रोशन हो हम
जी ले वोह सपना सुनहरे भविष्य का
क्या यह सपना तेरा अपना नहीं ...
चाहती हूँ अपने सोच को , दुनिया में इस तेरह फैलाऊँ
एक दिन इस खुबसूरत सपने को हकीकत बनाऊ
जो क्रांति हो खुद में वो ही है क्रांति देश की
इस को एक मजबूत अपना फलसफा बनाऊ
जिस माहौल में जीना चाहती थी
वोही माहौल, बनाने को जी करता है
बनकर पत्रकार हर रंज से लड़ने को जी करता है
लिख दूँ हर फलक पे यह दास्ताँ
देश के मकसद से दे मकसद ज़िन्दगी को
क्या यही मेरी ज़िन्दगी की मुकाम नहीं